उफ्फ! ये राष्ट्रवाद

किसे पता था कि लक्षद्वीप का नाम मालदीव से मिलता-जुलता होने की कीमत इतनी बड़ी हो सकती है, कि ये मुद्दा मीडिया पर छा जाए और ट्विटर पर इतना बड़ा राष्ट्रीय उन्माद खड़ा हो जाए कि बायकाट मालदीव्स ट्रेंड करने लगे। 
    
वसुधैव कुटुंबकम् के विजयोन्माद के साथ जी-20 के सम्मेलन को अभी छह महीने भी नहीं बीते कि भारतीय मीडिया और भाजपाई आई टी सेल के राष्ट्रभक्तों ने यह साबित कर दिया कि वसुधैव कुटुंबकम् अमरीका और रूस सरीखे शक्तिशाली देशों को मक्खन लगाने का एक सुंदर मोद्यावरण है। बाकी मालदीव सरीखे देशों (जिनका क्षेत्रफल भारत का लाखवां भाग भी नहीं है) के लिए ऐसे वसुधैव आडंबर की कोई जरूरत नहीं। वहां वसुधैव कुटुंबकम् का अर्थ विस्तारवादी मंसूबा और निर्लज्ज राष्ट्रवाद होता है। पूरी दुनिया एक परिवार है, जिसके हम भारतीय भी सदस्य हैं, से बदलकर अर्थ यह हो जाता है कि हम भारतीयों का परिवार इतना बड़ा है कि पूरी दुनिया को ढंक सकता है। पहला अर्थ अमरीका को समझाया-मनाया जाता है और दूसरा मालदीव पर थोपा जाता है। 
    
मोदी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने लक्षद्वीप की यात्रा की। पहले थे राजीव गांधी। राजीव गांधी की यात्रा के बारे में महाराज मोदी ने यह टिप्पणी की थी कि उस यात्रा में उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया था। अर्थात प्रधानमंत्री होने के नाते वहां पिकनिक मनाने गए। अब मोदीजी भी वहां गए और वहां की सुंदरता पर मुग्ध हो गए और अपने एंबेसडरी अंदाज में लक्षद्वीप को एक उज्जवल डेस्टिनेशन होने का आशीर्वाद दे आए। 
    
इधर मालदीव भारत से अपने पर्यटन व्यापार के कोई दस-ग्यारह प्रतिशत भारतीय पर्यटकों का अहसानमंद होने के साथ-साथ भारतीय दबाव और अपनी धरती पर भारतीय सैनिकों की मौजूदगी में असहज महसूस कर रहा था। नया विजयी राष्ट्रपति इंडिया आउट के नारे के साथ विजयी हुआ। उसने परंपरा तोड़ते हुए पहली यात्रा भारत की नहीं की।         

मोदी के आशीष से मोदी भक्तों ने जब लक्षद्वीप को मालदीव के बरक्स खड़ा किया और मोदी की लक्षद्वीप यात्रा की अपनी मौलिक व्याख्या करने लगे कि मोदी ने मालदीव की अर्थव्यवस्था को घुटने टिकवाने के लिए यह यात्रा की तो मालदीव के तीन मतिमारे मंत्रियों ने अपनी जुबान बेजा लंबी कर दी और मोदी को विदूषक और भारत को जाने क्या-क्या अनाप शनाप कह दिया। अनाप-शनाप क्या था यह जाना नहीं जा सकता, क्योंकि उनके ट्वीट जल्द ही हटा लिए गए। पर वह अनाप-शनाप था यह इसी बात से सिद्ध है कि वे ट्वीट तुरत-फुरत में हटा लिए गए। 
    
उसके बाद यह अपेक्षित था कि भारत सरकार आपत्ति करती। पर ऐसा नहीं हुआ। बस विदेश मंत्रालय ने मालदीव के दूत को बुलाकर फटकार लगाई। मालदीव के राष्ट्रपति ने मंत्रियों के बयानों की न सिर्फ भर्त्सना की बल्कि उन्हें निलंबित भी कर दिया गया। पर भारत सरकार ने कोई औपचारिक आपत्ति न जताकर उससे भी बड़ी कार्रवाई की। उसने और मुखिया मोदी ने गोदी मीडिया और आई टी सेल के मालदीव विरोधी विष वमन को अपना मौन आशीर्वाद दे दिया। और गोदी मीडिया यह विष वमन करता भी क्यों न, आखिर मालदीव का राष्ट्रपति भी तो सुन्नी मुसलमान है, क्या पता भारत को एक नया राजनीति-उपयोगी पाकिस्तान सरीखा दुश्मन मिल जाय। फिर तो रंग-बिरंगे देशभक्तों में बालीवुड धूम-धड़ाके के साथ शामिल हो गया। कंगना रनौत और अक्षय कुमार सभी मालदीव को उसकी औकात दिखाने लगे। 
    
राष्ट्रवाद का माहौल गणतंत्र दिवस की तैयारियों का परिणाम था या 2024 के राममयी लोकसभा चुनाव की तैयारियों का परिणाम था- पाठक इसका अंदाजा लगाने के लिए स्वतंत्र हैं, अलबत्ता तीन राज्यों में विजय के बाद लक्षद्वीप यात्रा से वोटों का लक्ष्य साधने वाले मोदी ने इस तू तू मैं मैं में कुछ नही बोला, यह ‘साफ’ है।  
    
आज जब भारत सरकार के समक्ष सबसे बड़ा राष्ट्रवादी कार्यभार अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत से जितवाना है, ऐसे में जानकार पूंजीवादी बुद्धिजीवियों या राजनयिकों की ऐसी बातें ज्यादा मायने नहीं रखतीं जिनके हिसाब से एक बड़े समझदार राष्ट्र को अपने छोटे मित्र राष्ट्रों से इस प्रकार रिश्ते खराब नहीं होने देने चाहिए जिनका अपराध मात्र इतना हो कि उन्होंने भारत यात्रा की परंपरा को तोड़ा हो या उनके किन्हीं मंत्रियों ने अशिष्टता की हो, खासकर जब दिल्ली दूर पीकिंग पास की भी आशंका हो। 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को