
5 अप्रैल को अमेरिका में 50 शहरों में ट्रम्प और मस्क के खिलाफ प्रदर्शन हुए। ये प्रदर्शन जहां एक तरफ ट्रम्प द्वारा दुबारा राष्ट्रपति बनने के बाद जनता पर विभिन्न तरीकों से बोले गये हमलों के खिलाफ हैं वहीं अमेरिका द्वारा पोषित युद्धों को बंद करने की भी मांग इन प्रदर्शनों में मुखरता से उठी।
जब 2024 में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहे थे तभी एलन मस्क की चुनावों में भूमिका खुलकर सामने आ गयी थी। एलन मस्क ने ट्रम्प को जिताने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। चुनाव के बाद जब ट्रम्प दुबारा राष्ट्रपति बने तो उन्होंने ट्रम्प को सरकारी दक्षता विभाग का प्रमुख बना दिया। अमेरिका में आज ट्रम्प के बाद कोई व्यक्ति है तो वो एलन मस्क ही है।
एलन मस्क ने सरकारी दक्षता विभाग का प्रमुख बनने के बाद तमाम विभागों में स्थायी नौकरियों को खत्म करने का अभियान चलाया हुआ है साथ ही पूर्व में जनता की भलाई के लिए चलाये जा रहे कल्याणकारी कार्यक्रमों को बंद कर दिया है। ऐसे में कर्मचारियों के सामने अपने भविष्य का संकट पैदा हो गया है।
इसी तरह ट्रम्प ने एक ऐसे व्यक्ति को स्वास्थ्य मंत्रालय दिया हुआ है जो पहले से ही वैज्ञानिक तरीके से इलाज के खिलाफ है। जिसका तर्क है कि वैक्सीन नहीं बनानी चाहिए। उसका कहना है कि आदमी के अंदर खुद ही प्रतिरोधी क्षमता पैदा होनी चाहिए और यही इलाज का तरीका है। जबकि हकीकत यह है कि वैक्सीन के बनने के बाद बहुत सारी बीमारियों जैसे चेचक, पोलियो आदि की रोकथाम की वजह से लोग स्वस्थ हैं। अब ऐसे व्यक्ति के स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रमुख बनने के बाद नयी-नयी बीमारियों के शोधों पर होने वाले खर्च को बंद किया जा रहा है और इस काम में लगे लोगों को निकाला जा रहा है।
इसके अलावा ट्रम्प का एल जी बी टी क्यू समुदाय के प्रति जो रुख है वह उनको नागरिक ही नहीं मानता। वह उनको किसी लिंग में रखने को तैयार ही नहीं है। ट्रम्प का कहना है कि अमेरिका में केवल दो ही लिंग रहेंगे - स्त्री और पुरुष। अन्य कोई नहीं होगा। यह दिखाता है कि समाज में वह एल जी बी टी क्यू समुदाय की पहचान को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।
इसके साथ ही ट्रम्प ने अपने राष्ट्रपतित्व के दूसरे काल में अप्रवासियों पर हमला बोला है। अप्रवासियों को जिस तरह जंजीरों में जकड़कर, अपराधियों की तरह उनके देश भेजा जा रहा है उसने भी ट्रम्प के खिलाफ एक आक्रोश पैदा किया है। ये वो लोग हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में अमेरिका आये हुए थे। अमेरिका में दुनिया भर से लोग लम्बे समय से आते रहे हैं और बसते रहे हैं। अब अप्रवासियों के साथ यह व्यवहार दक्षिणपंथियों को तो खुश कर सकता है लेकिन एक बड़ी आबादी में इस तरह का व्यवहार आक्रोश भी पैदा कर रहा है।
इन प्रदर्शनों के दौरान ‘फिलिस्तीन को मुक्त करो’, ‘नरसंहार बंद करो’ जैसे नारे भी लगे। ये नारे दिखाते हैं कि अमेरिका द्वारा इजराइल के साथ फिलिस्तीनियों के नरसंहार में साथ देना अमेरिकी जनमानस में ट्रम्प के खिलाफ आक्रोश पैदा कर रहा है। जब ट्रम्प चुनाव लड़ रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि उनके आते ही इजराइल द्वारा फिलिस्तीनियों का जो नरसंहार किया जा रहा है वह रुक जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इजराइल और हमास के बीच हुआ युद्ध विराम भंग हो चुका है। इजराइल द्वारा फिलिस्तीनियों का नरसंहार जारी है। दरअसल ट्रम्प और नेतान्याहू दोनों मिलकर पूरी ही फिलिस्तीनी आबादी को अन्य देशों में भेजकर शरणार्थी की जिंदगी बसर करने को मजबूर कर रहे थे और खुद उनकी जमीन को अमीरों की ऐशगाह बनाना चाहते हैं। जब फिलिस्तीनी उनकी इस शर्त पर नहीं माने तो उन्होंने युद्ध विराम भंग कर दुबारा युद्ध शुरू कर दिया है।
5 अप्रैल के प्रदर्शन के बाद आगे भी प्रदर्शन की तारीखें घोषित की गयी हैं। इन प्रदर्शनों का आगे जारी रहना ट्रम्प और मस्क के लिए मुसीबतें खड़ी करेगा।
ट्रंप और मस्क के खिलाफ इस आन्दोलन को ‘हैंड्स आफ’ नाम दिया गया। हैंड्स आफ’ का मतलब है ‘हमारे अधिकारों से दूर रहो’। इसका उद्देश्य यह जताना है कि जनता नहीं चाहती कि उनके अधिकारों में कोई हस्तक्षेप करे या उन पर किसी का नियंत्रण हो।
जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों को लाभ का ख्वाब दिखाकर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की तब से अमेरिका से लेकर दुनिया में इसके खिलाफ विरोध हो रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ट्रंप ने जो अत्यधिक टैरिफ की घोषणा की है, वह अमेरिकियों और दुनिया भर के लोगों के लिए एक चेतावनी है। दुनिया भर के लोग समझे कि ट्रंप एक विनाशकारी शक्ति हैं। अमेरिका के साथ साथ दुनिया के मेहनतकश लोग अपनी नौकरी, स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा, सामाजिक सुरक्षा, आवास, भोजन आदि के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लोगों के जीवन में कष्ट-परेशानी बढ़ रही हैं। बहुत से लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है।
आन्दोलन में लोगों ने ‘‘तानाशाह का विरोध करें’’, ‘‘लोकतंत्र बचाओ’’, ‘‘ट्रंप इस्तीफा दो’’ जैसे नारे लगाए व बैनर लहराए। लंदन और लिस्बन सहित अन्य यूरोपीय शहरों में भी ट्रंप और मस्क के खिलाफ प्रदर्शन हुए। फ्रांस की राजधानी पेरिस में लगभग 200 लोग, जिनमें से अधिकतर अमेरिकी थे, ट्रंप के विरोध में प्लेस डे ला रिपब्लिक पर जुटे ओर ट्रंप और मस्क का विरोध किया।