उत्तरी अफ्रीका के देश मोरक्को में 8 सितम्बर (शुक्रवार) की रात को आये भूकम्प से अब तक 3 हजार से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं। हर दिन के साथ मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। भूकम्प का केन्द्र मराकेश शहर से 70 किलोमीटर दूर एटलस की पहाड़ियों में था। इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.8 आंकी गयी। भूकम्प के कारण सड़कें अवरुद्ध हो चुकी हैं।
मोरक्को में अभी हाल में यह बड़ा भूकम्प है। इससे पहले भी यहां बड़े-बड़े भूकम्प आ चुके हैं। 1960 में मोरक्को के अगादिर में 5.9 तीव्रता का भूकम्प आया था जिसमें 12,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। इसी तरह 2004 में आये भूकम्प में 600 लोगों की मौत हुयी थी। 2016 में भी यहां भूकम्प आया था।
मोरक्को में इस भूकम्प का प्रभाव शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी पड़ा है। ऐसे भीतरी इलाके भी हैं जहां अभी तक बचाव दल नहीं पहुंच पाये हैं क्योंकि मलबे ने रास्तों को अवरुद्ध कर दिया है। भूकंप का अधिक तीव्रता का होना और जमीन की सतह से कम नीचे (करीब 18 किलोमीटर) पर होने ने ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।
भूकम्प के वक्त मोरक्को का राजा पेरिस की अपनी ऐशगाह में छुट्टी मना रहा था। मोरक्को लौटने के बाद भी उसने भूकम्प के बारे में राहत तो दूर बयान तक जारी करने की जरूरत नहीं समझी। राहत के नाम पर फ्रांस ने महज 50 लाख यूरो की मदद की घोषणा की जो यूक्रेन को उसके द्वारा भेजे 30 लड़ाकू विमानों में महज एक की कीमत के बराबर था। कई यूरोपीय साम्राज्यवादी मदद के बहाने अपने पैर पसारने के मौके तलाश रहे हैं।
उत्तरी अफ्रीका के ही एक अन्य देश लीबिया में बाढ़ के कारण भारी तबाही हुयी है और यहां भी 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हुयी है। हजारों लोग अभी लापता बताये जा रहे हैं। भूमध्यसागर से उठने वाले तूफान डेनियल के कारण यह तबाही मची। इस तूफान ने लीबिया के पूर्वी इलाके में स्थित एक बांध के एक हिस्से को क्षतिग्रस्त कर दिया जिसके कारण इस बांध के पानी ने भारी तबाही मचायी।
लीबिया का डेरना शहर इस आपदा में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। इसके अलावा अल बेदया, बेनगाजी, शहात आदि शहर भी काफी प्रभावित हुए हैं।
लीबिया में एक समय गद्दाफी का शासन था। लीबिया गद्दाफी के शासन में समृद्ध देश कहा जाता था। 2011 में अरब बसंत का फायदा उठाते हुए साम्राज्यवादियों ने गद््दाफी को मार डाला और तब से लीबिया गृहयुद्ध की स्थिति से गुजर रहा है। गृहयुद्ध के कारण लीबिया में वैसे भी जीवन की आवश्यक जरूरतों का अभाव है। ऐसे में बाढ़ के बाद फैलने वाले रोगों और मेडिकल सुविधाओं का अभाव तथा भोजन सामग्री की कमी के कारण लीबिया के बाढ़ग्रस्त इलाके की स्थिति और खराब होने वाली है।
आज अफ्रीकी महाद्वीप साम्राज्यवादियों की लूट का अड्डा बना हुआ है। उन्होंने मोरक्को में कर्ज के रूप में कुछ निवेश किया है जो उनके द्वारा मोरक्को की लूट को ही बढ़ाने और अपनी सुविधाओं के लिए ज्यादा है (जैसे पर्यटन का विकास उनकी अय्याशगाह की पूर्ति करता है)। मोरक्को में खुद का ढांचागत विकास हो सके ऐसा नहीं हुआ है। अतः भूकंप के बाद जो मदद लोगों को शीघ्र मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पा रही है। इससे नुकसान और बढ़ने की संभावना है।
इसी तरह लीबिया में अगर आज बाढ़ के कारण हजारों लोगों की मौत हुई तो इसकी एक वजह समय रहते लोगों को अपनी जगह से न हटाया जाना भी है। जो तूफान भू मध्यसागर में उठा उसकी सूचना समय रहते मिल जाने पर लोगों को हटा दिया जाना चाहिए लेकिन संसाधनों की कमी के कारण ऐसा नहीं हुआ। और नुकसान ज्यादा हुआ। इन संसाधनों की कमी के लिए एक तरह से साम्राज्यवादी भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने लीबिया को गृहयुद्ध में बर्बाद कर दिया है जिसका परिणाम वहां की मेहनतकश आबादी झेल रही है और अब बाढ़ उनके जीवन को और नारकीय बना देगी।