नंधौर रेंज के खनन मजदूरों का बदहाल जीवन

उत्तराखण्ड के नैनीताल जिले में नंधौर रेंज स्थित है जो कि संरक्षित क्षेत्र है। यहां से नंधौर नदी निकलती है। यह नदी अपने साथ कंकड़, पत्थर और रेत बहाकर लाती है जिसका खनन सरकार द्वारा कराया जाता है। सरकार वन निगम को खनन कराने का काम सौंप देती है और उसका क्षेत्र निर्धारित करती है। अब वन निगम की जिम्मेदारी होती है कि खनन कराकर राजस्व की वसूली सुनिश्चित करे। वन निगम खनन का काम ठेकेदारों के माध्यम से करवाता है। खनन के लिए ठेकेदार अलग-अलग जगहों से मजदूरों को लाकर खनन का काम करवाते हैं। 
    
नंधौर रेंज में नंधौर नदी में खनन का काम चोरगलिया के पास मुखानी जोगा के पास कराया जाता है। खनन के लिए ठेकेदार जिन मजदूरों को उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से लाते हैं उनके रहने के लिए वहीं पास में ही जगह का इंतजाम करते हैं जहां पर मजदूर झोंपड़ी डाल कर रहते हैं। एक-एक झोंपड़ी में 10 से लेकर 20 मजदूर तक रहते हैं। कुछ मजदूर पूरे परिवार के साथ वहां पर रहते हैं। ऐसी ही सैकड़ों झोंपडियां वहां पर लगी हुयी हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि यहां पर झोंपड़ियों का एक गांव बसा हुआ है। 
    
उस गांव में सरकार की तरफ से कोई इंतजाम नहीं हैं। जिस गांव के सहारे सरकार को हजारों करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है उनके लिए सरकार की तरफ से कोई भी मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं करायी जाती है। न तो बच्चों के पढ़ने के लिए कोई स्कूल है और न ही कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध है। न ही स्वच्छ पीने का पानी उपलब्ध करवाया गया है। मजदूर पीने के लिए पास के गांव विदारीनगर से पानी भरकर लाते हैं। खाना बनाने के लिए लकड़ियों का इंतजाम जंगल से करते हैं। कपड़े वगैरह धोने के लिए नंधौर से ही निकली नहर जो इसी गांव से गुजरती है उसका प्रयोग करते हैं। उस गांव में उनके इलाज के लिए कई झोलाझाप डॉक्टरों की क्लीनिक भी हैं और रोजमर्रा की जरूरत के लिए कई दुकानें भी खुली हुयी हैं। ये सभी भी उसी तरह के पालीथीन की झोंपड़ी में ही हैं। जितनी भी झोंपड़ियां जिसके खेत में पड़ी हैं खेत का मालिक उसका किराया वसूलता है। अलग-अलग साइज की झोंपड़ी के हिसाब से किसी का एक हजार किसी का दो हजार तो किसी का तीन हजार रुपये महीने किराया देना पड़ता है। 
    
यहां पर काम करने वाले जो मजदूर हैं उनमें से ज्यादातर सहसवान, बदायूं और गाजीपुर के हैं। ये मजदूर अलग-अलग समूह/टीम बनाकर खनन करते हैं। इन्हें 7 रुपये प्रति क्विंटल मजदूरी मिलती है। एक गाड़ी में करीब 100 क्विंटल रेता लोड़ किया जाता है। अलग-अलग टीम प्रति दिन दस से लेकर बीस गाड़ी लोड़ करती है। यह उनके टीम में लोगों की संख्या के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। तब जाकर उन्हें छः सौ से सात सौ रुपये मजदूरी मिल पाती है। उसमें भी कभी-कभी विभिन्न कारणों से खनन का काम बंद हो जाता है तो उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती है। हल्द्वानी में तनाव के कारण कई दिन खनन का काम नहीं हुआ। सबसे बुरी हालत मई और जून की भीषण गर्मियों में होती है। उस समय तक सामान्यतः होली के समय ही आस-पास के मजदूर चले जाते हैं तो दूर-दराज के मजदूरों पर ही खनन का सारा काम आ जाता है। भीषण गर्मी और मजदूरों का अभाव मजदूरी को कुछ बढ़ाने पर मजबूर कर देता है। उस समय मजदूरी 8-10 रुपये क्विंटल हो जाती है। -हल्द्वानी संवाददाता

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता