फिलिस्तीनी प्रतिरोध संघर्ष : एक साल बाद

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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक विनाश किया है। इसने अपने व्यापक नरसंहार व विनाश के दायरे को बढ़ा कर लेबनान, सीरिया, यमन और ईरान तक कर दिया है। इसने हमास के नेताओं, हिजबुल्ला के नेताओं और ईरान के कई शीर्ष कमाण्डरों की हत्याएं अपने आतंकी हमलों के जरिए की हैं। इसने लेबनान में हवाई हमले करके बेरूत और अन्य जगहों पर बम गिराकर नागरिक आबादी पर कहर बरपा किया है। इसके बावजूद, यहूदी नस्लवादी शासक अपने मकसद को, हमास और अन्य प्रतिरोध संगठनों को नेस्तानाबूद करने, अपने बंधकों को रिहा कराने, ईरान की सत्ता को अलग-थलग करने और बृहत्तर इजराइल का यहूदी नस्लवादी सपना पूरा करने की ओर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ पाये हैं। 
    
इसके विपरीत, इजराइली समाज में जो तात्कालिक एकता अल अक्सा बाढ़ से पैदा हुई थी, अब उसमें भी दरार पड़ने लगी है। यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की धुर दक्षिणपंथियों से भरी सरकार के विरुद्ध आवाजें इजराइल के भीतर तेज होती जा रही हैं। यह अब स्पष्ट होता जा रहा है कि नेतन्याहू के विरुद्ध इजराइली समाज के भीतर बढ़ते आक्रोश से ध्यान भटकाने के लिए ही इस युद्ध का विस्तार किया जा रहा है। ठीक अल अक्सा बाढ़ के पहले नेतन्याहू की सत्ता द्वारा न्यायपालिका के अधिकारों को कार्यपालिका के अधीन करके सीमित करने के कानून के विरुद्ध और उसके भ्रष्टाचार के मामले को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे। अब ये आवाजें फिर से न उठ सकें इसलिए वह युद्ध का विस्तार करने में लगा हुआ है। 
    
लेकिन उसके ये कदम भी उसकी चाहत के विपरीत काम कर रहे हैं। उसने लेबनान में तबाही मचाना शुरू कर दिया है। उसने सोचा था कि हिजबुल्ला के महासचिव सहित शीर्ष कमाण्डरों की हत्या करके उसे दिशाहीन करके पंगु बना देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। व्यापक पैमाने पर बमबारी करने के बावजूद वह जमीनी हमले में लगातार ही मुंह की खा रहा है। जमीनी हमले में उसके सैनिक मारे जा रहे हैं और घायल सैनिकों को वापस ले आने में उसे कई बार असफलता का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, खुद के कब्जा वाले क्षेत्रों पश्चिमी किनारे और गोलन पहाड़ियों पर हिजबुल्ला और अन्य प्रतिरोध संगठनों के हमले हो रहे हैं। ये हमले पहले से और तेज हो गये हैं। हाइफा बंदरगाह शहर के आस-पास के सैनिक ठिकानों पर मिसाइलों व राकेटों से लगातार हमले हो रहे हैं। अब तो हिजबुल्ला ने वहां के नागरिकों को चेतावनी दी है कि वे उस इलाके को छोड़ कर ही अपनी जान बचा सकते हैं। हाइफा के आस-पास ही नागरिक रिहाइशों में इजराइली सेना कब्जा किए हुए है। उधर इराक के प्रतिरोधी संगठन गोलन पहाड़ियों पर हमला कर रहे हैं। इजराइल की आइरन डोम और ऐरो वेपन प्रतिरक्षा प्रणालियों को धता बताते हुए प्रतिरोध के संगठन इजराइल की राजधानी तेल अबीव तक मिसाइलों से हमला कर रहे हैं। यमन के हौथी लड़ाकू न सिर्फ लाल सागर में इजराइल आने-जाने वाले जहाजों पर हमला कर रहे हैं बल्कि वे मिसाइलों से इजराइल के अंदर तेल अबीव तक हमला कर रहे हैं। 
    
इन सबसे बढ़कर हानिया और हिजबुल्ला के महासचिव की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान ने दुबारा इजराइल के सैन्य ठिकानों पर मिसाइलों से हमला किया। इस हमले में इजराइली एफ-35 अमरीकी लड़ाकू हवाई जहाजों को नष्ट करने की बात सामने आ रही है। ईरान की हुकूमत ने इजराइल को चेतावनी दी है कि इजराइल द्वारा ईरान पर हमला करने की स्थिति में जवाबी कार्यवाही व्यापक और इजराइल के लिए विनाशकारी होगी। इजराइल की हुकूमत ईरान के आणविक ठिकानों और तेल शोधन और भण्डारण की सुविधाओं को अपने हमले का निशाना बनाने की योजना बना रही है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी अभी तक हर इजराइली हमले का समर्थन करते रहे हैं। वे इजराइल का समर्थन इस तर्क के आधार पर करते रहे हैं कि इजराइल को अपनी आत्मरक्षा का अधिकार है। इसी आत्मरक्षा के अधिकार के नाम पर अमरीकी साम्राज्यवादी इजराइल को भारी मात्रा में अत्याधुनिक हथियार और गोला-बारूद देते रहे हैं। इजराइल इन हथियारों और गोलाबारूद का इस्तेमाल गाजापट्टी और अन्य स्थानों पर नरसंहार और विनाश करने के लिए करता रहा है और वह उसे अभी भी जारी किये हुए है। अब जब ईरान ने इजराइल को यह चेतावनी दी है कि यदि वह उसके परमाणु ठिकानों और तेल ठिकानों पर हमला करेगा तो उसे जो जवाब मिलेगा उससे समूचे इस क्षेत्र से तेल आपूर्ति बाधित हो जायेगी और इजराइल को इससे पूरी तौर पर नुकसान होगा। इसके साथ ही ईरान ने खाड़ी के देशों को आगाह किया कि यदि इजराइल के साथ संघर्ष में इन देशों ने अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाजत इजराइल को दी तो वे भी दुश्मन की मदद करने वाले देश के तौर पर समझे जायेंगे और वे ईरानी हमलों का निशाना बन सकते हैं। ईरान ने अमरीकी साम्राज्यवादियों को भी चेतावनी दी है कि खाड़ी देशों में मौजूद अमेरिकी फौजी अड्डे ईरानी हमले का स्वाभाविक निशाना बन सकते हैं। इसका असर यह हुआ कि अमरीकी शासकों ने इजराइल को आगाह किया है कि वे ईरान के परमाणु और तेल ठिकानों को निशाना न बनायें। यह किसी नेकनीयती का नतीजा नहीं है कि अमेरिकी साम्राज्यवादी इजराइल को ऐसा करने से रोक रहे हैं। यदि होर्मुज जलडमरूमध्य से जहाजों की आवाजाही ईरान बाधित कर देगा तो दुनिया भर में तेल आपूर्ति बाधित हो जायेगी। दूसरे अमरीकी साम्राज्यवादी अपने सैन्य ठिकानों की सुरक्षा को खतरे में नहीं डालना चाहते। इसलिए वे इजराइल को ईरान के परमाणु व तेल सुविधाओं पर हमला करने से रोक रहे हैं या रोकने का दिखावा कर रहे हैं।
    
इसका एक और बड़ा कारण है। वह यह कि रूसी साम्राज्यवादियों और ईरान के बीच एकजुटता है। अभी रूस ने एस-400 हवाई सुरक्षा प्रणाली ईरान को मुहैया करायी है और हिजबुल्ला संगठन को सैन्य मदद दी है। अब वह इजराइल के विरुद्ध लेबनान और ईरान के साथ खुलकर आने का संकेत दे चुका है। इसके साथ ही चीनी साम्राज्यवादियों की अवस्थिति भी ईरान के साथ व इजराइल के विरोध में है। ऐसी स्थिति में यदि, इजराइल ईरान के परमाणु व तेल ठिकानों पर हमला करता है तो इसका परिणाम बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय युद्ध में हो सकता है। यह कोई बड़ी साम्राज्यवादी ताकत, विशेष तौर पर अमरीकी साम्राज्यवादी नहीं चाहेंगे। वे इसे इसलिए भी नहीं चाहेंगे क्योंकि वे रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन की पराजय को देख रहे हैं और इसे टालने के लिए यूक्रेन को उकसाकर उसे लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें देकर रूसी इलाके में हमला करने के परिणाम को भी देख रहे हैं। रूसी इलाके में हमला करके यूक्रेनी सेना बुरी तरह से घिर गई है और उसे भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। यदि पश्चिम एशिया में भी अमेरिका और रूसी सेना आमने-सामने आ जाती हैं तो यहां क्षेत्रीय युद्ध भयंकर स्वरूप ले सकता है और यह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के इस क्षेत्र में कमजोर होते जा रहे प्रभाव को और ज्यादा कमजोर करने की ओर ले जा सकता है। 
    
ईरानी सरकार के कूटनीतिक प्रयासों का पश्चिम एशिया के देशों पर यह असर पड़ा है कि अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ नजदीकी रिश्ता रखने वाली इन सत्ताओं ने अमरीकी सत्ता से यह मांग की है कि वह इजराइल को ईरान के परमाणु और तेल ठिकानों पर हमला करने से रोकने के लिए कहे। सऊदी अरब ने तो यह स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि जब तक फिलिस्तीन की आजादी का मसला सिद्ध नहीं हो जाता, तब तक इजराइल के साथ उनके संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं। 
    
इन सभी घटनाक्रमों के चलते इजराइल न सिर्फ क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि समूची दुनिया के स्तर पर ही अलग-थलग पड़ता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र आम सभा में दुनिया के 125 देशों ने इजराइल द्वारा नरसंहार किये जाने की निंदा की है। अब अमेरिकी साम्राज्यवादी भी गाजा में हो रहे नरसंहार, संयुक्त राष्ट्र संघ के चिकित्साकर्मियों की हत्या और वहां भोजन, पानी व दवाईयों की आपूर्ति में बाधा डालने की निंदा करने के लिए मजबूर हुए हैं। हालांकि उनका यह व्यवहार पाखण्डपूर्ण है। एक तरफ हथियारों और गोला-बारूद से मदद और दूसरी तरफ अभी की यह निंदा परस्पर विरोधी आचरण है। लेकिन अमरीकी साम्र्राज्यवादी ऐसे पाखण्डपूर्ण व्यवहार के लिए ही जाने जाते हैं। 
    
आज ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान को अलग-थलग करने की तमाम कोशिशों के बावजूद, उस पर तमाम कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने के बावजूद अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए। बल्कि इजराइल द्वारा नरसंहार व महाविनाश का समर्थन करने के कारण न सिर्फ विश्व जनमत के द्वारा उनका विरोध हो रहा है बल्कि यूरोपीय देशों के कुछ शासक भी उनसे इस मामले में अलग राय रख रहे हैं। इधर जब संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना पर इजराइल के सैनिकों ने निशाना बनाया तो यूरोप के कई देश इसकी निंदा करने में आगे आ गये। अब तो यह स्पष्ट हो गया है कि इजराइली शासक और उसकी सेना बौखला गये हैं। वे संयुक्त राष्ट्र कार्यालय पर अपने यहां कब्जा कर रहे हैं। वे शांति सैनिकों की हत्या कर रहे हैं। यहां तक कि अमेरिकी पत्रकारों और कुछ अमेरिकी बुजुर्ग सेवानिवृत्त सैनिकों की गिरफ्तारी इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे पश्चिम किनारे में फिलिस्तीनियों को उजाड़कर जबरन यहूदी बस्तियां बसाने की कार्रवाही की जांच-पड़ताल करने के लिए अमेरिका से पश्चिमी किनारे आये थे। 
    
फिलिस्तीन में आज एक वर्ष बाद ऐसी स्थिति हो गई है कि गाजा पट्टी की 70 फीसदी से ज्यादा इमारतें ध्वस्त हो गई हैं, अस्पताल, स्कूल, विश्वविद्यालय और मस्जिदें तबाह हो चुके हैं। लोग तंबुओं में खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। फिर भी लोगों में इजराइली आतताईयों के विरुद्ध संघर्ष करने का जज्बा बरकरार है। लोगों के बीच यही आवाज तेजी से बुलंद हो रही है- आजादी या शहादत। 
    
इजराइली शासकों की यह चाल कि व्यापक दमन के चलते एक दिन गाजा पट्टी व पश्चिम किनारे की आवाम हमास व प्रतिरोध संगठनों के विरुद्ध खड़ी हो जायेगी, काम नहीं आ रही है। गाजा पट्टी और पश्चिमी किनारे में प्रतिरोध संगठनों के साथ तमाम विपत्तियों के बावजूद जनता की एकजुटता और जुझारू बन गई है। 
    
इसके अतिरिक्त इजराइली शासकों की यह चाल भी नहीं सफल हुई, जो विभिन्न प्रतिरोध संगठनों के बीच तालमेल को तोड़ने के लिए वे कर रहे हैं। इसके विपरीत उनके बीच तालमेल बढ़ा है और विभिन्न मोर्चों में वे मिलकर हमला करने में एकजुट हुए हैं। यमन के हौथी, लेबनान के हिजबुल्ला, पश्चिम किनारे और गाजा पट्टी के प्रतिरोध संगठन, सीरिया और इराक के प्रतिरोध संगठन तथा ईरान सभी का तालमेल बरकरार है और बढ़ता जा रहा है। 
    
इस एक साल में जो सबसे बड़ी उपलब्धि रही है, वह यह कि फिलिस्तीन की आजादी का मसला समूचे पश्चिम एशिया में ही नहीं बल्कि कमोवेश समूची दुनिया के एजेण्डे में फिर से उजागर हो गया है। 7 अक्टूबर, 2023 से पहले फिलिस्तीन का मसला सिर्फ कभी-कभार प्रस्ताव में आता था, अब वह असल में केन्द्र में आ गया है।
    
तमाम विनाश और नरसंहार के बावजूद फिलिस्तीन की आजादी का संघर्ष अभी भी जिन्दा है। यह इस बात को सही सिद्ध करता है कि एक कमजोर देश, एक सहजोर देश के आक्रमण को परास्त कर सकता है। एक छोटा देश, एक बड़े और ताकतवर देश के हमले को पराजित कर सकता है, बशर्ते कि उस देश की जनता अपने भवितव्य को अपने हाथ में लेने का साहस करे। आज फिलिस्तीन, लेबनान, यमन सहित प्रतिरोध करने वाले संगठन यही कर रहे हैं। वहां की व्यापक आबादी जब अपने भवितव्य को अपने हाथ में लेने के लिए तैयार है तो कोई भी ताकत इन्हें आत्मिक तौर पर परास्त नहीं कर सकती है और एक न एक दिन ये विजयी और स्वतंत्र राज्य के बतौर भौतिक तौर भी सामने आयेंगे।

 

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।

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इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।