यहूदी नस्लवादी इजरायली सत्ता द्वारा जारी नरसंहार के साथ-साथ आतंकवादी कार्रवाइयों को भी अंजाम दिया जा रहा है। उन्होंने नये वर्ष की शुरूवात के दूसरे ही दिन लेबनान की राजधानी बेरूत के पास एक ड्रोन हमले द्वारा हमास के उपनेता अरौरी की उनके कुछ साथियों के साथ हत्या कर दी। इस नस्लवादी सत्ता ने ईरानी सैन्य संगठन क्रांतिकारी कोर गार्ड के नेता सुलेमानी की हत्या की चौथी बरसी के अवसर पर आतंकवादी संगठन आई.एस.आई.एस. के जरिए आतंकी हमला कराया। यह अमरीकी साम्राज्यवादियों की मिलीभगत के बगैर नहीं हो सकता था। इस हमले में 100 के आस-पास लोग मारे गये और लगभग 300 लोग घायल हो गये। इस नस्लवादी सत्ता ने हिजबुल्ला के एक कमाण्डर की आतंकी हमले में हत्या कर दी। इसी प्रकार, इसने ईरानी क्रांतिकारी कोर गार्ड के एक नेता की पहले हत्या करा दी थी। बगदाद के पास इराकी मिलिशिया के कुछ सदस्यों को इसने आतंकी हमले में मार दिया। इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता के गाजापट्टी में चल रहे नरसंहार के साथ ही ये आतंकी हमले उसके अपराधों को और ज्यादा बढ़ा देते हैं।
इन अपराधों का जवाब गाजापट्टी में हमास दे रहा है। यमन के हौथी विद्रोही बाब अल मंदेब और अदन की खाड़ी में दे रहे हैं। दक्षिणी लेबनान से हिजबुल्ला संगठन की ओर से उत्तरी इजरायल में दिया जा रहा है। सीरिया और इराक की मिलिशिया द्वारा वहां मौजूद अमरीकी फौजी अड्डों पर हमला करके जवाब दिया जा रहा है। सीरियाई सीमा से गोलन पहाड़ियों के इलाके पर प्रहार करके प्रतिरोध संगठनों द्वारा जवाब दिया जा रहा है।
प्रतिरोध संगठनों के करारे जवाब के चलते यहूदी नस्लवादी इजरायल को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हौथियों द्वारा लाल सागर का रास्ता इजरायली मालों के लिए बंद करने से इजरायली अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है। गाजापट्टी को फिलिस्तीनियों से मुक्त कराने की योजना को इतने नरसंहार और तबाही के बाद भी पलीता लग चुका है। हमास और अन्य प्रतिरोध संगठनों द्वारा इजरायली टैंकों, बख्तरबंद गाड़ियों, बुलडोजरों को नष्ट किया गया है। मरने वाले इजरायली सैनिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। गाजापट्टी की जमीन इजरायली सैनिकों के लिए कब्रगाह बनती जा रही है।
इसलिए इजरायल अब जमीन लड़ाई पर केन्द्रित करने के बजाय हवाई हमलों और टारगेट किलिंग पर जोर दे रहा है।
अब तक गाजापट्टी में 23,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी नागरिकों का नरसंहार किया जा चुका है।
यहूदी नस्लवादी इजरायली सत्ता ने गाजापट्टी में 9 जनवरी तक जो विध्वंस और हत्यायें की हैं, उनका एक आंकड़ा हमास की सरकार के मीडिया विभाग द्वारा जारी किया गया है। वह निम्न है। (देखें तालिका 1, 2, 3 व 4)
इतने बड़े पैमाने पर हत्याओं और विध्वंस के बावजूद फिलिस्तीनी लोगों का प्रतिरोध बढ़ता जा रहा है। हमास और अन्य प्रतिरोध संगठनों द्वारा इजरायली सैनिकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। अभी तक इजरायली शासक फिलिस्तीनियों से गाजापट्टी को खाली कराकर यहूदियों की बस्तियां बसाने की बात कर रहे थे। लेकिन अब उनकी भाषा बदलने लगी है।
अब इजरायली सत्ता यह कहने लगी है कि गाजावासी फिलिस्तीनियों को वहां से बाहर करने की इजरायली सरकार की कभी भी नीति नहीं रही है। इसका एक कारण तो गाजापट्टी में फिलिस्तीनी प्रतिरोध का बढ़ता जाना है। दूसरा कारण, लेबनान के हिजबुल्ला संगठन द्वारा इजरायल के उत्तर के हिस्से में बढ़ते हुए हमले हैं। इन हमलों में इजरायल की एक सैन्य फैक्टरी तबाह हुई है। उसकी अनेक निगरानी सैनिक चौकियां नष्ट हुई हैं। कम से कम दो हजार सैनिक हताहत हुए हैं। दक्षिण लेबनान से सटी इजरायली कब्जाकारियों की बस्तियों पर हमले हुए हैं। इजरायल की बहुप्रचारित रक्षा प्रणाली अजेय कही जाने वाली आयरन डोम को नाकाम किया गया है। कई टैंक, गाड़ियां और निगरानी रखने वाली मशीनें व उपकरण तबाह हुए हैं। एक लाख से ज्यादा आबादी को विस्थापित करने के लिए इजरायल मजबूर हुआ है।
हिजबुल्ला के बढ़ते हमलों के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए इजरायल की हुकूमत की रक्षा कर पाना मुश्किल दिखाई पड़ने लगा। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इजरायल की सत्ता से यह कहना शुरू कर दिया है कि वह लेबनान में नया मोर्चा न खोले। वह हिजबुल्ला को पराजित करने की स्थिति में नहीं है।
इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता और अमरीकी साम्राज्यवादियों की भाषा बदलने का तीसरा कारण अंतर्राष्ट्रीय पैमाने पर इजरायली हुकूमत और इस मामले में अमरीकी साम्राज्यवादियों का अलग-थलग पड़ना है। दक्षिण अफ्रीका ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इजरायल की सरकार के विरुद्ध नरसंहार करने और नस्लीय सफाये का मुकदमा दर्ज कर रखा है। इस मुकदमे का दुनिया के कई देशों ने समर्थन किया है।
इस अंतर्राष्ट्रीय अलगाव को कम करने और इजरायल के पक्ष में माहौल बनाने के लिए अमरीकी साम्राज्यवादियों ने ब्लिंकन (विदेशमंत्री) को पश्चिम एशिया के देशों की यात्रा पर भेजा। अमरीकी विदेश मंत्री ब्लिंकन ने तुर्की, साइप्रस, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, साउदी अरब, इजरायल और पश्चिमी किनारे के फिलिस्तीनी प्राधिकार के नेताओं से मुलाकात की। मुलाकातों में ब्लिंकन ने फिलिस्तीन, इजरायल टकराहट को क्षेत्रीय संघर्ष में विस्तारित होने से रोकने के लिए सभी पड़ोसी अरब देशों से सहयोग की अपील की। उसने फिलिस्तीन समस्या के समाधान के लिए कूटनीतिक प्रयासों पर जोर देने और सशस्त्र टकराव से बचने के उपाय तलाशने की अरब देशों से मदद की अपील की।
इस मदद मांगने के दौरान ब्लिंकन ने एक बार भी इजरायल द्वारा गाजापट्टी में किये जा रहे इजरायली नरसंहार की निंदा करना तो दूर की बात है, आलोचना भी नहीं की। पत्रकारों और उनके परिवारों की हत्याओं के बारे में ‘‘दुःख’’ व्यक्त किया। लेकिन इसके लिए भी उसने इजरायल को जिम्मेदार नहीं बताया। बच्चों और महिलाओं की व्यापक हत्याओं के बारे में उसका यही दुःख का रूप था। उसने अनाज, पानी, दवायें और अन्य जरूरत के सामानों को गाजापट्टी के नागरिकों को पहुंचाने के प्रयासों को अमरीकी समर्थन की पाखण्डपूर्ण बातें कीं। वह फिलिस्तीन राज्य के गठन के बारे में सकारात्मक बातें करते हुए इजरायल की सुरक्षा की गारण्टी के साथ इस प्रश्न को लगातार जोड़ रहा था।
ब्लिंकन की दोमुंही बातें पूरी तरह पाखण्डपूर्ण थीं। उसने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चलने वाले नरसंहार के मुकदमे को ध्यान हटाने वाला और बेकार की बात बताया। यह इजरायल के हर अपराध में अमरीकी साम्राज्यवादियों की साझीदारी को दर्शाता है।
ब्लिंकन जहां हमास को नष्ट करने के इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों के क्रूर, विध्वंसात्मक और नरसंहारात्मक हमले को सफल प्रयास कह रहा था, वहीं वह फिलिस्तीनी राज्य के निर्माण की वकालत भी कर रहा था। ब्लिंकन के दिमाग में, अमरीकी साम्राज्यवादियों की योजना में शायद मोहम्मद अब्बास के फिलिस्तीनी प्राधिकार को गाजापट्टी में सत्तासीन करने का ख्याल हो। इसके लिए वह साउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और तुर्की के शासकों के साथ कोई योजना या साजिश रच सकता है।
लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादी 2024 की दुनिया के बारे में अतीत की निगाह से सोच रहे हैं। आज अमरीकी साम्राज्यवादियों का पश्चिम एशिया और विश्व व्यापी पैमाने पर वह प्रभुत्व नहीं रह गया है जो 2006 या उसके आस-पास के समय में था। न ही पश्चिमी एशिया के शासक अमरीकी साम्राज्यवादियों के अनुगामी भर हैं। उनके अपने स्वार्थ हैं। वे अपने स्वार्थों के हिसाब से वैश्विक शक्तियों के साथ अपने सम्बन्धों को बनाते हैं।
इससे बढ़कर न सिर्फ पश्चिम एशिया की बल्कि दुनिया के पैमाने पर फिलिस्तीन के मसले पर दुनिया की व्यापक मजदूर-मेहनतकश आबादी में एकजुटता की चेतना बढ़ी है। इसे दुनिया के अलग-अलग देशों में इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत द्वारा बरपा किये गये नरसंहार और अत्याचार व विध्वंस के विरुद्ध फिलिस्तीनी आबादी के साथ गाजापट्टी की आबादी के साथ एकजुटता के प्रदर्शनों में देखा जा सकता है।
इन प्रदर्शनों की वह विशाल व विकराल ताकत थी जिससे न सिर्फ अरब देशों के शासक बल्कि दुनिया भर के पूंजीवादी शासक चिंतित हैं। विशेष तौर पर जब यहूदी नस्लवादी सत्ता को चुनौती कई मोर्चों पर मिल रही हो, और यह लगातार बढ़ती जा रही हो, तब अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा ये कोशिशें सिर्फ असफल होने के लिए अभिशप्त हैं।
वे हौथी लोगों की नावें डुबाकर उनके 10 साथियों की हत्या करके यह खामख्याली पाल सकते हैं कि इससे यमन के लड़ाकू अपने हमले रोक देंगे। लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा बनाया गया आपरेशन प्रासपैरिटी गार्जियन उनके हमलों को रोकने में ज्यादा कारगर नहीं होगा।
पश्चिम एशिया की इस टकराहट में अब एक नया आयाम जुड़कर सामने आ रहा है। इस आयाम के जुड़ने से अमरीकी साम्राज्यवादी और इजरायली शासक और ज्यादा चिंतित हो रहे हैं। यह आयाम है रूस और चीन का खुलकर पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप।
यह हस्तक्षेप क्या शक्ल लेगा, यह आने वाला समय बतायेगा। लेकिन इसका प्रभाव अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए अच्छा नहीं लगता।
उसकी वैश्विक प्रभुत्व की क्षमता का क्षरण और तेज होगा। वह अपनी नियति देख रहा है। वह अपने प्रभुत्व को बनाये रखने के लिए फड़फड़ा रहा है।
ये ही वे कारण हैं कि जिनके चलते इजरायली यहूदी नस्लवादी हुकूमत और अमरीकी साम्राज्यवादियों की भाषा बदल रही है। लेकिन ये बदली हुयी भाषा में भी शैतान ही हैं।
नरसंहारक इजरायली-अमेरिकी शासकों की बदलती भाषा
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को