न्यूज क्लिक पर यूएपीए और आलोचक पत्रकारों का उत्पीड़न

अक्टूबर के पहले हफ्ते के अंत में एक सुबह दिल्ली-एनसीआर समेत कई जगहों पर 40 से अधिक, अधिकतर ऐसे पत्रकारों एवं अन्य मीडियाकर्मियों के घरों पर पुलिस ने छापे मारे, उनसे घर पर पूछताछ के साथ ही उन्हें थाने ले जाकर घंटों पूछताछ की गई, जो न्यूज क्लिक से जुड़े रहे हैं। अभिसार शर्मा, भाषा सिंह, उर्मिलेश, प्रांजय गुहा ठाकुरता, अनिंद्यो चक्रवर्ती ऐसे जाने-माने पत्रकार हैं, जो भारत सरकार की नीतियों पर लंबे समय से सवाल उठाते रहे हैं और मौजूदा भाजपा सरकार के दौरान जिन्होंने सरकार का चाटुकार मीडिया बनने से इंकार कर दिया है। जब सरकारी पार्टी अपने नेता को भगवान का दर्जा देकर नतमस्तक हो, जब मुख्य धारा का मीडिया उसकी जय जयकार कर रहा हो, जब सभी संस्थान संविधान के बरक्स अधिकाधिक सरकार के इशारों से संचालित होते हों, ऐसे निरंकुश शासन में सभी लक्षण फासीवाद की तरफ इशारा कर रहे हों, तो सोशल मीडिया पर विरोध और आलोचना के कुछ लोकप्रिय स्वर या चैनल महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। उनकी पहुंच यदि सरकारी, गोदी या मुख्यधारा कहे जाने वाले मीडिया जितनी ना भी हो तो भी उनका दायरा राष्ट्रव्यापी है। विपक्ष की बढ़ती एकजुटता की पृष्ठभूमि में मोदी सरकार मीडिया के इन विरोधी स्वरों से खतरा महसूस कर इनकी जुबान बंद कर देना चाहती है।
    
इन पत्रकारों से घर पर या थाने पर जो सवाल पूछे गए, बिना रसीद जो उनके मोबाइल या लैपटाप जब्त किए गए, मनमाने तरीके से जो किताबें जब्त की गईं, इन सबमें और इन पर जिस आरोप के तहत कार्यवाही हो रही थी, उसकी एफआईआर तक उन्हें न दिए जाने को देखा जाये तो दो बातें साफ होती हैंः पहली यह कि सरकार आलोचना से बहुत डरी हुई है। आगामी चुनाव में उसे खतरा दिखाई दे रहा है। दूसरा इस भय के चलते वह आलोचक मीडिया को डरा-धमका, उलझा कर शांत करा देना चाहती है। जहां बिना आरोप जाहिर किए छापेमारी और सामान की जब्ती जनवादी कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है, वहीं यूएपीए जैसी धारा में एफआईआर मामले में निरंकुशता को भी दिखाता है।
    
पत्रकारों से पूछे गए सवालों में ये मुख्य थेः क्या आपने दिल्ली के हिंदू-मुस्लिम दंगों की रिपोर्टिंग की? क्या आपने किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग की? क्या आपने नागरिकता कानून आंदोलन को कवर किया था? ये सब करना कैसे किसी अपराध का सबब बन सकता था, यह पत्रकारों के लिए समझना मुश्किल था।
    
न्यूज क्लिक एक न्यूज वेबसाइट है, जिसके अमित चक्रवर्ती और प्रबीर पुरकायस्थ अभी भी गिरफ्तार हैं। (बाकी पत्रकारों को एक या दो बार लंबी पूछताछ के बाद सामान्यतः छोड़ दिया गया है। पर उन्हें ‘बरी’ कर दिया गया है, ऐसा कहना अभी मुश्किल है।) 
    
एफआईआर हासिल करने के लिए भी न्यूज क्लिक को न्यायालय का सहारा लेना पड़ा।
    
पर इससे पहले कि एफआईआर सामने आती, चाटुकार मीडिया ने हमेशा की तरह सरकार की खूब चाटुकारिता की और मीडिया ट्रायल में आलोचक पत्रकारों को देशद्रोही, चीन से पैसा लेने वाले गद्दार आदि घोषित कर दिया।
    
सरकार को यह सब करने का आधार न्यूयार्क टाइम्स के एक लेख की कुछ भ्रामक पंक्तियों से मिला। अमरीका का एक नागरिक नेविल राय सिंघम है जो शंघाई में रहता है, वह एक पूंजीपति है, जिसके बारे में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सक्रिय सदस्य होने का आरोप एफआईआर में लगाया गया है और कहा गया है कि वह न्यूज क्लिक में निवेश करता है। और वेबसाइट पर चीन के पक्ष से भारत में भारत विरोधी प्रचार का आरोप लगाया गया है। साथ ही शाओमी, ओप्पो जैसी तमाम चीनी मोबाइल कंपनियों की गैर कानूनी मदद का आरोप न्यूज क्लिक पर लगाया गया है।
    
रोचक यह है कि ये वो कंपनियां हैं जो हजारों करोड़ का कारोबार हिंदुस्तान में वर्षों से कर रही हैं। ये क्रिकेट मैच से लेकर तमाम टीवी शो प्रायोजित करती हैं और यहां तक कि प्रधानमंत्री राहत कोष में करोड़ों में दान करती हैं और उसका खुलेआम प्रचार करती हैं।
    
अभिसार शर्मा जैसे सोशल मीडिया पर सक्रिय पत्रकार न्यूज क्लिक से अपने संबंधों पर अपने चैनलों पर बता चुके हैं कि किस कानूनी कागजी अनुबंध के तहत न्यूज क्लिक के लिए सलाहकार का या साप्ताहिक शो करने का काम करते हैं। उनके अनुसार भारत में कानूनी रूप से रजिस्टर्ड किसी भी कंपनी के लिए काम करना उनका जनवादी अधिकार है और वे बिना किसी दबाव के भारतीय संविधान के तहत काम करते हैं।
    
स्पष्ट है कि इस बड़े स्तर की उत्पीड़क कार्यवाही की वैधानिकता शुरुआत से ही सवालों के दायरे में है। इसका असली मकसद अपने राजनैतिक आलोचकों को डराकर शांत कराना और अपनी आलोचना को बंद कराना है। चुनाव तक ऐसे और भी हथकंडे अपनाए जाएंगे, इसमें उलझाकर आलोचना के स्वरों को दबाने का प्रयास उल्टा भी पड़ सकता है, पर भाजपा बौखलाहट में यह सब करेगी। पत्रकारों की विशाल आबादी के साथ-साथ उन सभी ताकतों को इसका विरोध करना होगा जो जनवादी हकों को छिनने से रोकना चाहते हैं।

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता