अमरीकी धमकियों के साथ ईरान-अमरीका वार्ता

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अमरीकी सरगना ट्रम्प लगातार ईरान को धमकी दे रहे हैं। ट्रम्प इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु बम नहीं बनाने देंगे। ईरान की हुकूमत का कहना है कि वह परमाणु ऊर्जा का अपना शांतिपूर्ण प्रयास जारी रखेंगे और यह उसका अपना अधिकार है। कि वह अपने न्यायपूर्ण अधिकार का इस्तेमाल करेगा और किसी भी धमकी के आगे नहीं झुकेगा। ईरान का यह भी दावा है कि उसका शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी की निगरानी में है। 
    
एक तरफ ट्रम्प ईरान को लगातार धमकी दे रहा है और दूसरी तरफ ईरान के साथ वार्ता भी कर रहा है। अमरीका और ईरान के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता के तीन चक्र पूरे हो गये हैं और चौथे चक्र की वार्ता मई के प्रथम सप्ताह में होनी तय है। ये वार्ताएं ओमान की मध्यस्थता में मस्कट, रोम और मस्कट में हुई हैं। दोनों पक्षों ने वार्ता को सकारात्मक बताया है। पहले ट्रम्प के बयान ऐसे आ रहे थे जिससे लगता था कि वह ईरान पर दबाव डालकर वार्ता के लिए मजबूर कर रहा है। लेकिन जब उसे लगा कि ईरान दबाव के आगे नहीं झुक रहा है तो उसने सीधे वार्ता का रास्ता अपनाया। जब ईरान ने यह कह दिया कि वह अमरीका के साथ सीधे वार्ता नहीं करेगा तो फिर यह अप्रत्यक्ष वार्ता का दौर चला। 
    
यहां यह ध्यान में रखने की बात है कि 2018 में इसी ट्रम्प प्रशासन ने एकतरफा तौर पर ईरान के साथ कई ताकतों के साथ हुई परमाणु संधि से अपने को अलग कर लिया था और ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये थे। आज जब फिर से ट्रम्प प्रशासन ईरान के साथ वार्ता कर रहा है तो उसके प्रति ईरान का शंकालु होना लाजिमी है। इसके बावजूद, वह अमरीका के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता के लिए तैयार हुआ है। इन तीन बार की अप्रत्यक्ष वार्ताओं में प्रगति के दावों के बावजूद ईरान पर अमरीकी हमले का खतरा मौजूद है। 
    
इसका प्रमुख स्रोत इजरायली यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की हुकूमत है। यह हुकूमत शुरू से ही ईरान को अपना मुख्य दुश्मन मानती रही है। लेकिन वह ईरान पर हमला बगैर अमरीकी स्वीकृति और साझेदारी के नहीं कर सकती। इजरायल की यहूदी नस्लवादी सरकार लगातार कोशिश करती रही है कि अमरीका को ईरान के विरुद्ध युद्ध में शामिल करे। पश्चिम एशिया में अमरीकी साम्राज्यवादियों की सबसे घनिष्ठ सहयोगी इजरायली नस्लवादी यहूदी सरकार है। वह हर कीमत में उसका समर्थन और सहयोग करता रहा है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी न सिर्फ ईरान को एक परमाणु शक्ति बनने से रोकना चाहते हैं, बल्कि उसके मिसाइल कार्यक्रमों और गैर परमाणु आधुनिक हथियारों को भी सीमित करना चाहते हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी और इजरायली यहूदी नस्लवादी शासक फिलिस्तीन, लेबनान, सीरिया, इराक और यमन के प्रतिरोध संगठनों को नष्ट करने में ईरान को एक बड़ी बाधा के बतौर देखते हैं। पश्चिम एशिया में एकमात्र ईरान की हुकूमत है जो दृढ़तापूर्वक इन प्रतिरोध संगठनों का समर्थन करती है और इजरायली हमलावरों, नरसंहारकर्ताओं तथा अमरीकी साम्राज्यवादियों का विरोध करती है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए 1979 से ही ईरान आंख की किरकिरी रहा है। वे ईरानी हुकूमत के विरुद्ध लगातार साजिशें करते रहे हैं। लेकिन अभी तक वे इसमें सफल नहीं हुए हैं। ईरान पर लगाये तमाम कड़े प्रतिबंधों के बावजूद वे उसे झुका नहीं पाये हैं।
    
वे अभी भी ईरान को तबाह करने की धमकी देते रहते हैं। इसी अप्रैल महीने में ट्रम्प ने ईरान को धमकी देते हुए कहा कि अगर वे कोई समझौता नहीं करते, तो बमबारी होगी। यह एक ऐसी बमबारी होगी, जैसी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी होगी। 
    
ईरान पर बमबारी करने की धमकियां ट्रम्प की बातचीत के दौरान लगातार जारी हैं। और वह इसकी तैयारी भी कर रहा है। अमरीकी रक्षा सचिव पीट हैगसेथ ने यूएसएस कार्ल विंसन के नेतृत्व में एक-दूसरे विमानवाहक स्ट्राइक समूह को इस क्षेत्र में यू.एस.एस., हैरी एस. ट्रूमैन कैरियर स्ट्राइक समूह में शामिल होने के लिए भेजा है। अमरीका के पास हिंद महासागर में डियेगो गार्सिया द्वीप पर कैम्प थंडर बे में कम से कम छः परमाणु सक्षम बी-2 स्पिरिट बमवर्षक हैं। विमान 30,000 पाउण्ड के बंकर-बस्टर बम ले जा सकते हैं और ये आसानी से ईरान तक मार कर सकते हैं। 
    
इसके अतिरिक्त, अमरीका पश्चिम एशिया में अपने सैनिक अड्डे कायम किये हुए है। बहरीन, मिश्र, इराक, इजरायल, जार्डन, कुवैत, कतर, साउदी अरब, सीरिया और संयुक्त अरब अमीरात आदि देशों में इसके स्थायी सैनिक अड्डे हैं। अमरीकी सेना जिबूती और तुर्की में बड़े अड्डों का भी इस्तेमाल करती है। कतर में अमरीकी सेण्ट्रल कमाण्ड का अग्रिम मुख्यालय है। बहरीन में अमरीकी नौसेना का पांचवा बेडा तैनात है। 
    
समूचे पश्चिम एशिया में अमरीकी सैनिक अड्डों की तैनाती ईरान को चौतरफा घेरने और उसे नष्ट करने में भूमिका निभाने के लिए है। लेकिन ये सारे अमरीकी अड्डे ईरानी मिसाइलों की मारक क्षमता के दायरे में आ जाते हैं। यदि अमरीका या/ और इजरायल ईरान पर हमला करता/करते हैं तो ईरान की हाइपरसोनिक मिसाइलों के दायरे में अमरीकी फौजी अड्डे और इजरायल का पूरा क्षेत्र आ जायेगा। इधर ईरानी हुकूमत ने अरब शासकों को यह सीधी चेतावनी दे दी है कि यदि ईरान पर हमले के लिए उनकी जमीन या हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल होता है तो वे भी दुश्मन की तरह माने जायेंगे और ईरानी हमले का निशाना बनेंगे। इसके बाद कई अरब देशों ने कहा है कि ईरान पर हमले के लिए उनकी जमीन या हवाई क्षेत्र के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जायेगी। 
    
ईरान की हुकूमत ने दुनिया के पैमाने पर अपने दोस्तों के दायरे को बढ़ाया है। अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा अलग-थलग करने की कोशिशों का जवाब उसने अन्य साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करके दिया है। उसने चीनी साम्राज्यवादियों के साथ 20 वर्षीय 400 अरब डालर का व्यापार करार कर रखा है। चीन ईरान का तेल खरीद रहा है और बदले में वह ईरान में निवेश कर रहा है। ईरान की हुकूमत ने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ 25 वर्षीय रणनीतिक साझेदारी का अभी हाल ही में करार किया है। इसके अतिरिक्त वह ब्रिक्स और शंघाई सहकार संगठन का सदस्य होने के नाते इन दो देशों के अलावा अन्य सदस्य देशों के साथ किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है। 
    
इसलिए अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए ईरान को नेस्तनाबूद करने की धमकी को अमल में लाना इतना आसान नहीं है। यदि अमरीकी साम्राज्यवादी और इजरायली यहूदी नस्लवादी ईरान पर हमला करते हैं तो यह एक लम्बा खिंचने वाला युद्ध हो सकता है और जितना ज्यादा लम्बा यह युद्ध चलेगा, उतना ही अमरीकी साम्राज्यवादी और ज्यादा इसमें उलझते चले जायेंगे। व्यापक पैमाने पर हथियारों और गोला-बारूद का इस्तेमाल करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में चीन को अपने लिए सबसे बड़़ा खतरा मानने वाले अमरीकी साम्राज्यवादियों को उससे मुकाबला करने में अड़चनों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान के साथ लम्बे समय तक युद्ध में नहीं जाना चाहेंगे। ट्रम्प ने एकाध बार यह कहा है कि ईरान के विरुद्ध युद्ध में इजरायल लड़ेगा और अमरीका इजरायल की मदद में खड़ा होगा। 
    
ट्रम्प चाहे जितना भी शांति का दूत बनने की बातें करता हो, वह दरअसल एक साम्राज्यवादी सरगना है और वह अपने (अमरीकी साम्राज्यवादियों के) मुनाफे को अधिकतम करना चाहता है। वह कभी गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को उजाड़़कर उन्हें अलग-अलग देशों में बसाने की बात करता है तो कभी यूक्रेन की खनिज सम्पदा पर कब्जा करने की बात करता है। ट्रम्प यह अच्छी तरह जानता है कि अमरीकी साम्राज्यवादी अब दुनिया की एकछत्र प्रभुत्वकारी शक्ति नहीं हैं। उसकी आर्थिक ताकत अब उतनी नहीं है (दूसरों के सापेक्ष) कि अन्य ताकतों को अपने इशारों पर चला सके। 
    
ऐसी स्थिति में वह अमरीका को फिर से महान बनाने के नारे के जरिए दुनिया के देशों के साथ तटकर युद्ध में लगा हुआ है। दुनिया के देशों के खिलाफ तटकर बढ़ाने की बात से भी उसे पीछे हटना पड़ा है। 
    
अब वह ईरान को धमकी भी देता है और उसके साथ वार्ता भी करता है। ईरान की हुकूमत को भी प्रतिबंधों से छूट की उम्मीद है। प्रतिबंधों के कारण उसे काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। ट्रम्प प्रतिबंधों को कम करने के एवज में ईरान के अंदर अपनी पूंजी निवेश का रास्ता निकालेगा। ईरानी शासक भी एक पूंजीवादी शासक होने के नाते ऐसे सम्बन्ध विकसित करने में दिलचस्पी दिखा सकते हैं। लेकिन ट्रम्प को इजरायली हितों के साथ तालमेल बनाकर ईरान के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाने की कसरत करनी है। 
    
लेकिन एक साम्राज्यवादी सरगना होने के नाते ट्रम्प को दुनिया में अपने प्रभुत्व के लिए प्रयास करना है। अमरीका के भीतर सैन्य-औद्योगिक तंत्र की जरूरतों को भी प्राथमिकता में रखना है। सैन्य औद्योगिक तंत्र के हथियारों और गोला बारूद की बिक्री तभी बढ़ सकती है, जब युद्ध होंगे। इसलिए युद्ध अमरीकी साम्राज्यवादियों की एक आवश्यकता हैं।
    
यदि ईरान के साथ परमाणु मामले में कोई समझौता हो भी जाता है तो भी अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान को अपने प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत लाने के लिए हर कोशिश करेंगे। इन कोशिशों में ईरान पर हमला भी शामिल है। 
        

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