मजदूरों को अपाहिज बनाती स्वास्तिक आटो इंजीनियरिंग प्रा. लि. कम्पनी

/majadooron-ko-apaahij-banaati-swastik-auto-enjeeniyaring-praa-lim-company

आई एम टी मानेसर में स्वास्तिक आटो इंजीनियरिंग प्रा. लि. कम्पनी सेक्टर 5 प्लाट नं 162 में है। इस कंपनी में एक्टिवा स्कूटी का ढांचा (चेचिस) और मारुति के लिए भी कुछ पार्ट बनाये जाते हैं। यहां पर लगभग तीन सौ मजदूर (जिसमें पचास महिला मजदूर हैं) काम करते हैं। यहां पचास-साठ स्थाई मजदूर काम करते हैं। कम्पनी का मालिक गुड़गांव में रहता है।
    
यहां पर मजदूरों को श्रम कानूनों में दर्ज  सुविधाएं ना के बराबर मिलती हैं। इस कंपनी में कैंटीन की व्यवस्था नहीं है। मजदूर खुद अपना खाना लेकर आते हैं और अपनी मशीनों के पास ही नीचे बैठकर खाते हैं। कम्पनी में अलग से बैठकर खाना खाने की व्यवस्था नहीं कर रखी है। सिर्फ चाय मिलती है वह भी खराब गुणवत्ता वाली। यहां मजदूरों को साप्ताहिक अवकाश नहीं दिया जाता और न ही अन्य प्रकार की छुट्टियां। ओवरटाइम का डबल पैसा नहीं दिया जाता। मजदूरों को वेतन रसीद भी नहीं दी जाती है। 
    
कम्पनी में पीने के साफ पानी (आ रो/फिल्टर किया हुआ) की व्यवस्था नहीं है सिर्फ फ्रिज लगा हुआ है। पानी के टैंक की सफाई भी नहीं की जाती है। मजदूरों का कहना है कि वह पानी पीने योग्य नहीं है, लेकिन हमें मजबूरी में पीना पड़ता है। टायलेट भी गंदे रहते हैं, यहां पर हाथ धोने के लिए साबुन इत्यादि की व्यवस्था नहीं है। यहां वेतन 10 से 15 तारीख के बीच में दिया जाता है। मजदूरों को जूता वर्दी, हाथों के दस्ताने, ईयर प्लग इत्यादि सुरक्षा के उपकरण नहीं दिये जाते।
    
इस कम्पनी का मालिक महिला मजदूरों को गलत तरीके से और गलत नजरिए से छूता है। महिलाओं के विरोध करने पर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। मजदूरों ने बताया कि मालिक ने लगभग तीन साल पहले एक महिला के साथ जबरदस्ती की। जब उस महिला के गर्भ ठहर गया तो मालिक ने उस महिला को कम्पनी से निकाल दिया था। लगभग सभी कंपनियों में महिला मजदूरों को भांति-भांति के यौन शोषण का सामना करना पड़ता है।

काम की परिस्थितियां- यहां काम की परिस्थितियां खराब हैं, जिसके कारण मजदूरों के अंग-भंग होते रहते हैं। यहां पर मजदूरों से पुरानी और खराब मशीनों पर काम कराया जाता है। अक्टूबर माह में तीन मजदूरों के अंग-भंग हुए जिसमें रजनीश नाम के मजदूर की दाएं हाथ की तीन अंगुली उस समय कटीं, जब खराब और पुरानी मशीन को सही कर ट्रायल  किया जा रहा था। दूसरे मजदूर की दाएं हाथ की चार अंगुली कट गईं और सीने में लोहे की पत्ती घुस गई जिस कारण यह मजदूर बेहोश हो गया था। तीसरे मजदूर की मशीन के पास से माल की भरी ट्राली हटाते समय पलट गई जिस कारण उसके पैर का अंगूठा कट गया था और हाथ की अंगुली में फ्रेक्चर हो गया था। इन तीन घटनाओं से लगभग साल भर पहले एक और मजदूर के हाथ का पंजा कट गया था। जब ये मजदूर बेहोश हो गया था तो मैनेजमेंट के लोगों ने कोरे कागज पर उसके हाथ का अंगूठा लगवा लिया था।
    
मजदूरों के साथ ये घटनाएं पावर प्रेस मशीनों पर हुई हैं। मजदूरों का कहना है कि यहां अधिकतर मशीनें पुरानी हैं जो अक्सर खराब होती रहती हैं। इन्हीं खराब मशीनों को ठीक करके मजदूरों से चलवाया जाता है। अधिकतर मशीनों में सेंसर नहीं लगे हैं। जिनमें लगे भी हैं, वह खराब रहते हैं। खराब मशीनों की वजह से मजदूरों की जान जोखिम में पड़ने और अंग-भंग का खतरा बना रहता है। मालिक का ज्यादा से ज्यादा मुनाफे का लालच ही मजदूरों की जिंदगी से खिलवाड़ करता है।  मालिक/मैनेजमेंट मजदूरों को ही इन घटनाओं का दोषी बता, बाद में लीपापोती करते हैं। दुर्घटना के बाद मैनेजमेंट के लोग उस मजदूर से लिखवा लेते हैं कि ये दुर्घटना मेरी गलती से हुई और मैं आपके खिलाफ कोर्ट में कारवाई नहीं करूंगा और मैं आपके द्वारा कराए जा रहे इलाज से संतुष्ट हूं इत्यादि।
    
इन दुर्घटनाओं के बाद मैनेजमेंट शुरू में इलाज कराता है, और परमानेंट करने का आश्वासन देता है। लेकिन कुछ दिनों के बाद मैनेजमेंट गिरगिट की तरह रंग बदल उस मजदूर को दिए आश्वासन से मुकर जाता है। इस प्रकार कम्पनी मजदूरों को अपाहिज बना उनके भविष्य को संकट में डालती जा रही है। कम्पनी मालिकों की उपरोक्त मनमानी और बदइंतजामी पर शासन-प्रशासन, श्रम विभाग मूकदर्शक बना हुआ है। श्रम विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि कम्पनियों में श्रम कानूनां का पालन मालिक कर रहे हैं या नहीं, सुरक्षा के इंतजाम किए जा रहे हैं या नहीं इत्यादि की जांच करे। लेकिन श्रम विभाग भी मालिक/मैनेजमेंट की गोद में बैठा हुआ है। शासन-प्रशासन ने ही मालिकों को मनमर्जी करने की छूट दे रखी है। शासन-प्रशासन भी इन दुर्घटनाओं और मजदूरों के शोषण-उत्पीड़न का जिम्मेदार है।
    
इन सब हालातों को बदलने के लिए मजदूरों को हिम्मत कर ज़ुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। अपने अधिकारों को जान समझ कर उनके लिए एकजुटता के साथ लड़ने की जरूरत है। हमारे हिस्से की लड़ाई दूसरा कोई नहीं लड़ेगा। ये तभी सम्भव होगा जब मजदूर अपने आपको एक वर्ग के रूप में पहचाने और भांति-भांति की पार्टियों व नेताओं से अपना भरोसा खत्म करे। और साथ ही अपनी व अपने मजदूर वर्ग की ताकत पर भरोसा कायम करे। -गुड़गांव संवाददाता

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता