चले गए मालिक हमारे अलविदा !
टाटा मालिक !
दुखी हैं हम सब कुत्ते दुनियां के कुत्ते
फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन के कुत्ते
मसलन 2005 में पैदा हुए सलवा जुडूम के पिल्ले
कुत्ते जो टूट पड़े थे
गरीब आदिवासियों पर अपने गिरोह के मुखिया कुत्ते के आदेश पर जिन्होंने फाड़ डाले थे नग्न आदिवासी महिलाओं के स्तन और
मूत दिया था
संविधान के पन्नों पर !
जैसे 18 जुलाई 2012 के बाद
मारुति सुजुकी के
जापानी मालिक के कुत्तों ने किया।
नोंच डाले थे
आदिवासी बच्चों के कोमल शरीर
ताकि मालिक खोद सके धरती का सीना और आदिवासी गांव
सूअरों से भी तेज थूथन से
और निकाल ले सोना, चांदी, हीरे, मोती
मालिक बड़े दयालु हैं खुश होने पर
पार्टियों के मुख्य कुत्तों के गले में डालते हैं सुन्दर सोने के पट्टे
दुनिया के मालिक जानते हैं
कुत्तों की कीमत इसीलिए खोलते हैं दिल्ली मुंबई में फाइव स्टार कुत्ता अस्पताल !
मालिक सचमुच पशु प्रेमी होते हैं
चाहे भारतीय कुत्ते हों
(या जैसा साथी लेनिन कहते थे)
ड्यूमा (संसद) के रूसी सूअर !
-उमेश चन्दोला
कुत्तों का शोकगीत
राष्ट्रीय
आलेख
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को
7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक
अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।
इसके बावजूद, इजरायल अभी अपनी आतंकी कार्रवाई करने से बाज नहीं आ रहा है। वह हर हालत में युद्ध का विस्तार चाहता है। वह चाहता है कि ईरान पूरे तौर पर प्रत्यक्षतः इस युद्ध में कूद जाए। ईरान परोक्षतः इस युद्ध में शामिल है। वह प्रतिरोध की धुरी कहे जाने वाले सभी संगठनों की मदद कर रहा है। लेकिन वह प्रत्यक्षतः इस युद्ध में फिलहाल नहीं उतर रहा है। हालांकि ईरानी सत्ता घोषणा कर चुकी है कि वह इजरायल को उसके किये की सजा देगी।